Friday, 19 August 2016

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--01)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--01)


बसौ मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरत सांवरी सूरतनैना बने बिसाल।
मोर मुकुट मकराकृति कुंडलअरुण तिलक शोभे भाल।
अधर सुधारस मुरली राजतिउर वैजंति माल।
छुद्र घंटिका कटितट सोभितनूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाईभक्त बच्छल गोपाल।

हरि मोरे जीवन प्राण आधार।
और आसिरो नाहिं तुम बिनतीनूं लोक मंझार।
आप बिना मोहि कछु न सुहावैनिरखौ सब संसार।
मीरा कहै मैं दास रावरीदीज्यौ मति विसार।


मेरे तो गिरधर गोपालदूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुटमेरो पति सोई।
छाड़ि दई कुल की कानिकहा करि है कोई।
संतन ढिंग बैठि बैठि लोकलाज खोई।
अंसुवन जल सींचि सींचिप्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेलि फैल गईआनंद फल होई।
भगत देख राजी हुईजगत देख रोई।
दासी मीरा लाल गिरधरतारो अब मोहि।
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तरानों में मोहब्बत का तराना ले के आया हूं
फसानों में हकीकत का फसाना ले के आया हूं
तलाशे बर्के आदम सोज में निकला हूं जन्नत से
जलाने ही को आखिर आशियाना ले के आया हूं
जमाने से अलग हूं अहले सोहबत के लिए लेकिन
नया हक्को अमल का इक जमाना ले के आया हूं
उठ और तय दो जहां की मंजिलें एक गाम में कर ले
जनूने अर्शो पैमां वालहाना ले के आया हूं।
उठ! जाग!
उठ और तय दो जहां की मंजिलें एक गाम में कर ले
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तू है मुहीते बेकरांमैं हूं जरा-सी आबजू
या मुझे हमकिनार कर या मुझे बेकिनार कर।
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मेरे दिल को दोस्त ने लालाजार कर दिया
ये खिजाजादा चमन पुरबहार कर दिया
देखते ही देखते बर्के शोला पाश को
इक निगाहे लुत्फ से आबशार कर दिया
अब मुझे दिया दिखा मौत से परे है क्या
जिंदगी का राज सब आशकार कर दिया
होशियार को दिया इक जनूने जावदां
मस्त उसे बनाके फिर होशियार कर दिया,
आबजू जरा-सी थी ऐ मुहीते बेकरां,
तूने करके हमकिनार बेकिनार कर दिया!
मेरे दिल को दोस्त ने लालाजार कर दिया!
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हम बुरे ही सही
अच्छा भी मिलेगा अब कौन
यूं नहीं करते हैं
हर बात पर झगड़ादेखो!
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कौन दुनिया पर भला तकिया करे
है सहारा एक तेरे नाम का
जो भी हूं हूं तेरी रहमत के तुफैल
वर्ना था मैं आदमी किस काम का
खुम पै खुम देता चला जा साकिया
काम सोहबत में तेरी क्या जाम का
जादे राह लेकर चलें ऐ हमसफर
नाम हो अल्लाह का या राम का
दूर जाना है हमें आगे बढ़ो
वक्त आएगा बहुत आराम का
तू उठा कर देख तो अपनी नजर
किस कदर दिलकश है जल्वा बाम का।
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मेरी वीरानी को वीरानी-ए-सहारा न समझ
सौ बहारें लिए दामन में खिजां मेरी है
नगम्मी गम की है और दर्द का है सरूद
बस रही है सोजे तरन्नुम में फगां मेरी है
हिज्र में एक नहीं कितने जन्म बीत गए
वायदा वस्ल से उम्मीद जवां मेरी है
देखी हैं लाखों बहारें मेरी आंखों ने मगर
हुई आखिर नजर अफरोज खिजां मेरी है
अर्श से चंद कदम आगे हे मस्तों का मुकाम
मंजिल इश्क समझता हूं कहां मेरी है
जिन फिजाओं में जरूरत नहीं है बालो पर की
गाहे-गाहे हुई परवाज वहां मेरी है
मेरी हस्ती है तेरे दम से जहां में कायम
तेरी हस्ती का तकाजा है न जां मेरी है
कहलवाता है जो तू बस वही कह सकता हूं
कहने को यूं तो भला जबां मेरी है
मेरी वीरानी को वीरानी-ए-सहारा न समझ।
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