Sunday, 21 August 2016

पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--05)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

माई री मैं तो लियो गोबिन्दो मोल।
कोई कहै छाने कोई कहै चौड़े लियो री वजंता ढोल।
कोई कहै मुंहगो कोई कहै सुंहगो लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो कोई कहै गोरोलियो री अमोलिक मोल।
याही कूं सब लोग जाणत हैंलियो री आंखी खोल।
मीरा को प्रभु दरसण दीज्योपूरब जनम के कौल।


मैं गोविन्द गुण गाणा।
राजा रूठै नगरी राखैहरि रूठया कहं जाणा।
राणा भेजा जहर पियालाइमरत करि पी जाणा।
डिबिया में भेज्या ज भुजंगमसालिगराम करि जाणा।
मीरा तो अब प्रेम दीवानीसांवलिया वर पाणा।

पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे।
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
लोग कहैं मीरा भई बावरीसास कहैं कुलनासी रे।
विष का प्याला राणाजी भेज्यांपीवत मीरा हांसी रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागरसहज मिले अविनासी रे।
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फिर देखता हूं तो तेरा रूप नजर आता है
और सुनता हूं तो तेरी आवाज सुनता हूं
देखता हूं तो तेरा रूप नजर आता है
और सुनता हूं तो आवाज तेरी सुनता हूं
सोचता हूं तो फकत याद तेरी आती है
जिक्र करता हूं तो मैं जिक्र तेरा करता हूं
खामशी मेरी तेरा नगमाये खाबीदा है
मेरी आवाजजो तू कहता है मैं कहता हूं
जां तो जांजिस्म भी रोशन है तेरी लौ से मेरा
तेरे ही नूर से मैं शमा सिफ्त जलता हूं
भूख लगती है तो लगती है तेरे प्यार की भूख
चरण अमृत से ही मैं प्यास बुझा सकता हूं।
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मेरे तसव्वर में मेरे दिल में मेरी नजर में समा रहे हैं
वो जो हर जल्वाए हसीं को बहारे रंगीं बना रहे हैं
वही बसे हैं सकूते लब में सकूने दिल में सरूरे जां में
वो बनके इक मौजे बेखुदी मुझको अपनी सूरत दिखा रहे हैं
मेरी खामोशी की लै वही है मेरी गजल का वही तरन्नम
वो पर्दाए साजे दिल भी खुद हैं वो इसपे नगमें भी गा रहे हैं।
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कभी वो मेरी रगों में शोला कभी वो पलकों पे मेरी शबनम
कभी वो साहिल पे रक्स में हैं कभी वो तूफां उठा रहे हैं।
वही है कैफे निशाते हस्ती वही है सोजे गुदाजे हस्ती
कहीं बहाते हैं अश्के खूं वो कहीं खड़े मुस्कुरा रहे हैं
इधर खामोशी उधर खामोशी है गुफ्तगू फिर भी हो रही है
वो सुन रहे हैं बचश्मे खंदा बचश्मे नम हम सुना रहे हैं
जो मुस्कुराहट से उनकी उठती हैं नगमाए बेखुदी की मौजें
वही तो बनती हैं शेर मेरे जिन्हें वो खुद गुनगुना रहे हैं
वो बात जिसने जहान सारा है आशना इसको दिल ही दिल में
समझ के हम राजे नाशगुफ्ता जमाने भर से छुपा रहे हैं।
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आरजूए बका नहीं बाकी
दिल में खौफे फना नहीं बाकी
जल्वागर हर तरफ है तू ही तू
कोई तेरे सिवा नहीं बाकी
आलमे रंगो बू नहीं कायम
हस्तिए मासबा नहीं बाकी
कारवां का पता न मंजिल का
राह गुम रहनुमा नहीं बाकी
खत्म किस्सा हुआ मनो तू का
कोई भी माजरा नहीं बाकी
हस्त ही हस्त का है इक एहसास
अब शऊरे फना नहीं बाकी
तुझसे मैंने तुझे जो मांग लिया
और कुछ इलतजा नहीं बाकी
तुझसे मैंने तुझे जो मांग लिया
और कुछ इलतजा नहीं बाकी।
भक्त कहता है: अब और कुछ मांगने को बचा भी नहीं।
तुझसे मैंने तुझे जो मांग लिया
और कुछ इलतजा नहीं बाकी
शौके दीदार तेजतर कर दे
और कोई दुआ नहीं बाकी।
भक्त कहता है: और जरा दिखाई पड़और साफ दिखाई पड़! धुंधलके के बाहर आधुएं के बाहर आ! मेरी आंखों को और रोशन कर! मेरी आंखों को और खोल! मेरे पर्दे को और उठा।
शौके दीदार तेजतर कर दे
मेरी देखने की क्षमता को और चमका दे।
और कोई दुआ नहीं बाकी।
और मेरी कोई प्रार्थना नहीं है।
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न तो दुनिया ही बदलती है न दुनिया वाले
फैज जल्वा से नजर अपनी बदल जाती है
न तअयुन है मकां को न जमां को है करार
जिंदगी कैफे मोहब्बत से सम्हल जाती है
बेखुदी में हमीं हो जाते हैं फितरत से बुलंद
ये नहीं होता कि फितरत ही बदल जाती है
दूर तक फैले हैं आफाक में गम के साए
जिंदगी चीर के इन सबको निकल जाती है
इश्के सद मेहरो दरकशां वो खुदी बनती है
शोलाए हुस्ने तजल्ली में जो ढल जाती है।
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तेरे पास बैठके दो घड़ी तुझे हाले दिल है सुना लिया
मुझे अपना मान न मान तूतुझे मैंने अपना बना लिया
मुझे अपना मान न मान तूतुझे मैंने अपना बना लिया
तेरे पास बैठके दो घड़ी तुझे हाले दिल है सुना लिया
कई तेज गाम भटक गए कई बर्करो हुए लापता
तेरे आस्तां पै जो रुक गए उन्हें आके मंजिल ने पा लिया।
कई तेज गाम भटक गए...
ये नजर का अपनी कसूर है कि हिजाबे जलवा की है खता
कोई एक किरन को तरस गयाकोई चांदनी में नहा लिया।
कई तेज गाम भटक गए कई बर्करो हुए लापता
तेरे आस्तां पै जो रुक गए उन्हें आके मंजिल ने पा लिया।
ये नजर का अपनी कसूर है कि हिजाबे जलवा की है खता
कोई एक किरन को तरस गयाकोई चांदनी में नहा लिया।
मेरे साथ होती न बेखुदी तो भटक गया होता मैं कहीं
मेरी लग्जिशों ने कदम कदम मुझे गुमराही से बचा लिया।
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रोओ उसके लिए—वही प्रार्थना है।
पुकारो उसके लिए—वही साधना है।

आज इतना ही।

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