Friday, 19 August 2016

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--04)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--04)


वही तो है जिंदगी कि जिसमें अटूट अहसास हो बका का,
है मौत का जिसमें खौफहरदम वह जिंदगी जिंदगी नहीं है।
वही तो है रौशनी हो जिससे दिलो दिमागे बेशर दरकशां
करे जो दीवारो दर को रौशन वह रौशनीरौशनी नहीं है।
वही तो है ताजगी जो दौड़े रगों में मौजे निशात बन कर,
जो आरजो लब को रंग दे बसवो ताजगी ताजगी नहीं है।
वही तो है कैफे हस्त जिसमें पता न हो कैफे हस्त का भी,
है जिसमें एहसास बेखुदी का वो बेखुदी बेखुदी नहीं है।
वही तो है आशकी सरूरे निशाते रहती हो जिसमें हरदम,
हो गम का एहसास जिसमें पैदा वह आशकी आशकी नहीं है।
वही तो है खुद सपुर्दगीजिसमें हे शऊरे खुदी का फना सब,
खयाल अपना हो जिसमें बाकी वो बेदिली बेदिली नहीं है।
वही तो है बंदगी फक्त जो तेरी खुशी के लिए अदा हो,
तलब कि जिसमें हो लाग कुछ भी वो बंदगी बंदगी नहीं है।
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सितारों के जहां तक आ गए हैं
गुबारे कारवां तक आ गए हैं
तलाशे आस्ताने यार में हम
जमीं से आस्मां तक आ गए हैं,
मकान अपना मुअय्यन है न मंजिल,
कहें क्या हम कहां तक आ गए हैं,
फलक की वुसअतों से गुजर कर,
हदूदे ला-मकां तक आ गए हैं,
ये माना हमने वाइज और मोमन
सभी बागे जनां तक आ गए हैं,
मगर ऐसे भी हैं गुमगश्ता कुछ लोग,
जो रब्बे दो जहां तक आ गए हैं
ये माना हमने वाइज और मोमन
सभी बागे जनां तक आ गए हैं।
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ये जामो सबू दे उठा मेरे साकी,
अब आंखों से अपनी पिला मेरे साकी,
पिलाता चला जाजो पीना खता है,
तो होती रहे यह खता मेरे साकी,
मेरी तश्नगी फैज तक तेरे पहुंचे,
बढ़ा और उसको बढ़ा मेरे साकी,
बकाए हयाते खिरद से बचा ले,
मुझे बख्श कैफै फना मेरे साकी,
यही आरजू खत्मे सद आरजू है,
मुझे ऐसा बेखुद बना मेरे साकी,
यही मेरी मंजिल यही मेरा हासिल,
तू कदमों में दे दे मुझको जां मेरे साकी।
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मेरी आंखों ने जो देखा हैदिखलाया नहीं जाता
मेरे दिल ने जो समझा है वो समझाया नहीं जाता
मेरे सर में अजल से गूंजता है राग वहदत का
मगर कुछ बात है ऐसीअभी गाया नहीं जाता
मेरी आंखों में है जल्वा तेरादिल में तेरा मसकन
मगर मुश्किल तो ये हैफिर भी तू पाया नहीं जाता
है तेरे हुस्ने आलम ताब से मुझको शिकायत तो
मगर हरफे शिकायत लब पे भी लाया नहीं जाता
तेरे दम से हुई कायम शबाबो शेर की दुनिया
शबाबो शेर में लेकिन तुझे पाया नहीं जाता।

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