जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा।
और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया।
ओशो
पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--02)
जिससे हिल जाएं अर्श के पाये
अपने उस दर्द-ओ-गम की बात करो।
जो रुला दे तमाम आलम को
बस उसी चश्मे-नम की बात करो।
क्या हकीकत गमे जहां की है
मेरे साकी के दम की बात करो
क्या हकीकत गमे जहां की है
इस दुनिया के दुखों में रखा क्या है?
मेरे साकी के दम की बात करो
है रहीमो करीम अपना खुदा
हमसे लुत्फ-ओ-करम की बात करो।
हिज्र भी है वसाल का पैगाम
ऐने राहत सितम की बात करो।
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नमूदे जिंदगी का राज क्या है
मैं खुद क्या हूं, मेरी आवाज क्या है
फसूने नगमा क्या है, साज क्या है
जनूने इश्क क्या है, नाज क्या है?
ये रंगो बू ये रैनाई ये जल्वे
ये दिलकश सूरतो अंदाज क्या है
कहां तक हुस्न की फैली है वुसअत
न जाने इश्क की परवाज क्या है?
जो आंखों में फिरे हर वक्त सूरत
जो गूंजे कान में आवाज क्या है
कहूं क्या दीदाओ दिल दोनों हैरां
ये ऐजाजे हजूमे नाज क्या है?
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कांटों पै एतबार किया है कभी-कभी
फूलों को शर्मसार किया है कभी-कभी
पैमानाए बहार किया है कभी-कभी
जल्वों को आशकार किया है कभी-कभी
रहम आ गया जो इनपै मेरे जब्ते इश्क को,
आंखों को अश्कबार किया है कभी-कभी
रस्मो रिवाजे इश्क का कायल नहीं मगर
दामन को तारत्तार किया है कभी-कभी
गो बेखबर नहीं हूं हकीकत से खार की
फूलों पै एतबार किया है कभी-कभी।
जो देवता भी पा न सके मैंने वो कदम
चूमे हैं, उनसे प्यार किया है कभी-कभी
सर आस्तां पे तेरे झुकाए रहा मगर
इसको सुपुर्द-ए-दार किया है कभी-कभी
मैं हूं तो कोई दूसरा कैसे हुआ कहीं
मैं ही को "तू' शुमार किया है कभी-कभी
ऐसा चलता है।
कांटों पै एतबार किया है कभी-कभी
फूलों को शर्मसार किया है कभी-कभी।
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बसाया बिजलियों में आस्मां की
इलाही खैर मेरे आशियां की
समेटा दो जहां को अपने दिल में
खबर पाई निशाने बेनिशां की
जिधर उठी निगाहें शौक अपनी
उधर आई सिमट रौनक जहां की,
जहां जोश आया एक नारा लगाया
भर आया जी तो पैहम एक फुगां की
जहां सर झुक गया सजदे हुए हैं
रही बंदिश न संगे आस्तां की
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निकल के जन्नत से आए थे हम, वहां कोई हमनफस नहीं था
चले हैं दुनिया से तेरी या रब यहां कोई हमनवा नहीं है
यह सिलसिला मौत-औ-जिंदगी का तो है फरेबे निगार यकसर
न कोई आया यहां कहीं से, यहां से कोई गया नहीं है
तलाशे दरमां में मैं भटकता कहां फिरूंगा मेरे मसीहा
तेरी नजर के सिवा मेरे दर्दे दिल की कोई दवा नहीं है
तुम्हीं कहो मैं तुम्हारे दर से कहां चला जाऊं उठ के आखिर
सिवा तुम्हारे जहां में मेरा कोई भी तो आसरा नहीं है
जो तू है तो मैं नहीं हूं पैदा, जो मैं हूं तो तू नहीं है जाहिर
यहां तो बस बात एक की है, यहां कोई दूसरा नहीं है
खुदा के बंदे खुदा को पाते हैं अपनी हस्ती को खुद मिटा के
खुदी की तकमील करके देखें जो कह रहे हैं खुदा नहीं है
खुदा के बंदे खुदा को पाते हैं अपनी हस्ती को खुद मिटा के!
एक ही रास्ता है उसे पाने और जानने का: अपने को मिटा देना।
खुदा के बंदे खुदा को पाते हैं अपनी हस्ती को खुद मिटा के
खुदी की तकमील करके देखें जो कह रहे हैं खुदा नहीं है।
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