Wednesday, 31 August 2016

पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--10)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो











         मुझे दर्दे दिल की है जुस्तजू मुझे चश्मेतर की तलाश है
मुझे सोजो साजे हयात की गमे मोतवर की तलाश है
जिन्हें शौके जलबाए बाम हैं उन्हें हों नसीब बुलंदियां
मेरा सर जहां से न उठ सके मुझे ऐसे दर की तलाश है
जिन्हें बिजलियों की है आरजू उन्हें शोलगी मिले बर्फ की
मुझे आशियां की है जुस्तजू मुझे बालो पर की तलाश है
जिन्हें जौके कैफो सरूर है वो गरीक मस्तियों हाल हों
मेरे दिल को साकिए मयकदा तेरी इक नजर की तलाश है
है जुनूने सैरे फलक जिन्हें उन्हें राहे कहकशां मिले
मुझे तेरे दर की तलाश है तेरी रहगुजर की तलाश है
है तलाशे लालो गुहर जिन्हें मिलें उन्हें बहरो बर की ये दौलतें
मुझे नक्शे पा की तेरे तलब तेरे खाके दर की तलाश है
जो खुदा के जोया हैं अर्श पर वो खुदा से जाके हों हमसखुन
जिसे ढूंढता फिरे खुद खुदा मुझे उस बशर की तलाश है।
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मेरी निगाह में हुशियार हैं वो दीवाने
जो जानबूझ के खुद ही बने अनजाने
ये शहरवाले भला उनकी शान क्या जानें
जो बस्तियों को भी शर्मा रहे हैं वीराने
वो वक्फ रखते हैं अपने लिए ही राजे हयात
जो लौ का जुज्व कभी बन सके न परवाने
तेरी नजर से जो देखा तो कोई गैर न था
मेरी नजर में तो अपने थे और बेगाने
यही थी तेरी रजा इक सदा लगा के चले
अब इससे क्या मेरी कोई माने या न माने
कोई भी आज हमें पूछता नहीं इक दिन
जबाने खल्क पै होंगे हमारे अफसाने।
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जहाने शौक की नाकामीओ तही दस्ती
हमारी कमनजरी के सिवा और कुछ नहीं।
यह हमारा खाली हाथ हमारी दृष्टि की कमी है,और कुछ भी नहीं।
जहाने शौक की नाकामीओ तही दस्ती
यह हमारा खाली होना, खाली हाथ—
हमारी कमनजरी के सिवा और कुछ नहीं
ये दर्दे हिज्र ये बेचारगी ये महरूमी
दुआ की बेअसरी के सिवा कुछ और नहीं।
यह हमारा दुख, यह हमारी कमजोरी, यह हमारी असहाय अवस्था—
दुआ की बेअसरी के सिवा कुछ और नहीं।
हमें प्रार्थना करनी नहीं आई अभी तक,इसीलिए।
गरूरे इल्मो फखरे अकलो दानिशो फन
जहूरे बेखबरी के सिवा कुछ और नहीं।
हिजाबे रंगे खुदी हो कि बेखुदी का
बशर की दीदावरी के सिवा कुछ और नहीं।
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वो नगमा जो हुआ तखलीक कोहसारों में
जवां हुआ जो हिमाला के पाकगारों में
लतीफ जिसका तरन्नुम है आबशारों में
रवां दवां है जो गंगो—जमन के धारों में
जगाओ नगमाए संन्यास को ओम् तत् सत् ओम्
जिसे जहान की अलाइशें न छू सकें
जनों पिसर की कोई बंदिशें न छू सकें
जमानों जर की जिसे ख्वाहिशें न छू सकें
हसूले मरतबा की काविशें न छू सकें
वो पाक नगमाए संन्यास ओम् तत् सत् ओम्
बस एक ओम् को अपनाओ ओम् तत् सत् ओम्
बस ओम् में ही समा जाओ ओम् तत् सत् ओम्
तुम अपनी अस्ले खुदी पाओ ओम् तत् सत् ओम्
जन्म मरन से निकल जाओ ओम् तत् सत् ओम्
लगाओ नाराए संन्यास ओम् तत् सत् ओम्!












पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—नौवां)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो
पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—नौवां)

राम नाम रस पीजै मनुआं
सूत्र: कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की, मनभावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै, बांण पड़ी ललचावन की।
ए दोइ नैन कह्यौ नहिं मानै, नदिया बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु बस नहिं मेरो, पांख नहिं उड़ जावन की।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे, चेरी भइ हूं तेरे दामन की।
राम नाम रस पीजै मनुआं, राम नाम रस पीजै।
तज कुसंग सतसंग बैठि नित, हरि चरचा सुण लीजै।
काम क्रोध मद मोह लोभ कूं, चित्त से बहाय दीजै।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, ताहि के रंग में भीजै।
दरस बिन दूखन लागे नैन।
जब के तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहु न पायो चैन।
सबद सुनत मेरी छतिया कांपै, मीठे—मीठे बैन।
विरह कथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।
कल न पड़त तल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख—मेटन, सुख—दैन।
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लाख 
हुशियार बना कर खालिक
इक मखमूर बना देता है
इख्तयाराते जहां सौंप के सब कुछ
कितना मजबूर बना देता है
दौलते दर्दे दो आलम दे कर
दिले रंजूर बना देता है
फिर इनायत ये कि दर्दे दिल को
एक नासूर बना देता है
बालो पर करके सपुर्दे शोला
हमांतन नूर बना देता है
बेबसर आंख को तेरा जलवा
मतलाये नूर बना देता है।

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चोट पर चोट खाए जाते हैं
और हम मुस्कुराए जाते हैं
दाग दिल के जलाए जाते हैं
तीरगी यूं मिटाए जाते हैं
दर्द पर दर्द गम पे गम देकर
राजे उल्फत सिखाए जाते हैं
बख्श कर बेबसी ओ मजबूरी
इख्तयार आजमाए जाते हैं
खार फैला के बागे हस्ती में
गुंचाओ गुल खिलाए जाते हैं
बिजलियां गिर रही हैं हम पे इधर
वो उधर मुस्कुराए जाते हैं
दर्द पर दर्द गम पे गम देकर
राजे उल्फत सिखाए जाते हैं।
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चश्मे साकी की तरजमानी से
जिंदगी भर गई मआनी से।
एक बार झलक मिल जाए तो जिंदगी में बड़ा आनंद भर जाता है।
चश्मे साकी की तरजमानी से
उस प्यारे की जरा सी झलक मिल जाए।
जिंदगी भर गई मआनी से।
जहल में बस रहा है जोमे शऊर
अलअमां ऐसी नुक्तःदानी से।
सब फसूने जमाल कायम है।
इश्क की अपनी पासबानी से
जल्वाये दोस्त? रंगे हुस्ने यकीं
हिज्र पैदा है बदगुमानी से।
हमने पाई मुसर्रते अब दी
अपने ही सोजे जावेदानी से
हासिले जिंदगी हैं वो आंसू
जो गिरे फर्ते शदमानी से।
मुझको कहना हो राज की गर बात
काम लेता हूं बेजबानी से।
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जमा सब हुस्ने कायनात करो
इश्के जल्वा तलब की बात करो।
शाहिदे नौ से इश्के ताजा करो।
उस नये प्रीतम की बात करो।
अज सरे नौ तकल्लुफात करो।
खेल के अब जहान के गुजरो,
आओ कुछ तलफ तजरुबात करो।
यह हकीकत तो रोज मिटती है
इसको नजरे तवाहुम्मात करो।
छोड़ो इसे! इसको आंख से ओझल होने दो।
जिंदगी कर रही है मानी तलब
इश्क को मकसदे हयात करो।
देखो तुम खुद हो मतलाए अनवार
रोजे रोशन अंधेरी रात करो
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दुनिया की हकीकत से हरगिज इंकार नहीं मुझको लेकिन
हर दम के बिगड़ने—बनने से तसकीन नहीं आराम नहीं
अब दीदाओ दिल मुलताशी हैं इस हाजरो नाजरहस्ती के
जिसका न कोई आगाज कहीं और कोई कहीं अंजाम नहीं
जो दूर हो तो एक—एक घड़ी सदियों के बराबर होती है,
जो पास हो तो कुछ अपने लिए ये सुबह नहीं ये शाम नहीं।
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दुनियां ही बदल जाती है मेरी जब उनकी इनायत होती है
मिट जाते हैं दिल के गम सारे राहत ही राहत होती है
आते हैं नजर सब अपने ही यां कोई गैर नहीं होता
सब दिल की कदूरत मिटती है उल्फत ही उल्फत होती है
कुछ ऐसा अपनी आंखों में बस जाता है नूरे हुस्न—ए—अजल
हर वक्त निगाहों में रक्सां एक मोहनी सूरत होती है
दुख है तो यही मस्ती अपनी कायम नहीं होने पाई है
एहसासे दुई जब होता है बेहद ही कुल्फत होती है।

Tuesday, 23 August 2016

पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--08)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--08)


झुकाई कदमों से जब से तेरे खुदी मैंने
तो पाई जिंदगी में एक नई खुशी मैंने।
वह जो खुदी हैअहंकार हैवह जरा झुक जाए!
झुकाई कदमों में जब से तेरे खुदी मैंने
तो पाई जिंदगी में एक नई खुशी मैंने
न लुत्फ जुर्रते इंकार में रहा बाकी
तो फिर से सीखे हैं आदाबे बंदगी मैंने।
गमे जहां का असर दिल पे अब नहीं होता
बदल दिया है अब एहसासे जिंदगी मैंने
दिखाई देते थे चारों तरफ मुझे अगयार
रखी थी मुफ्त में ले सबसे दुश्मनी मैंने।
सब तरफ दुश्मन दिखाई पड़ते थे।
दिखाई देते थे चारों तरफ मुझे अगयारतेरी नजर से जो देखा तो सब हुए अपने
जहां में चारों तरफ पाई दोस्ती मैंने।
मेरी नजर से देखो। मेरी नजर तुम्हारी नजर बने!
तेरी नजर से जो देखा तो सब हुए अपने
जहां में चारों तरफ पाई दोस्ती मैंने
हंसी—खुशी में गमे इश्क को न भूला मैं
गमे जहां को सहा है हंसी—खुशी मैंने
ये पा के वादा कि अपनाओगे मुझे आखिर
तुम्हारे दर्द में होने न दी कमी मैंने।
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अगर तुम हंस दिए अहवाले—दिल परक्या ताज्जुब है
कि मैं खुद भी बमुश्किल जब्त करता हूं हंसी अपनी
अगर तुम हंस दिए अहवाले—दिल परक्या ताज्जुब है!
कि मैं खुद भी बमुश्किल जब्त करता हूं हंसी अपनी
हुई हैं बारिशें संगे मलामत की बहुत लेकिन
जहे वजए—जुनूं कायम है शौरीदासरी अपनी।
पत्थर तो बहुत गिरेंगे तुम्हारे सिरों पर।
हुई हैं बारिशें संगे मलामत की बहुत लेकिन
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जहां वालों का क्या है वो तो दीवाना समझते हैं
मुझे कुछ अक्ल से अपने भी बेगाना समझते हैं
अजब अंदाज से मेरे सकूते लब पे हंसते हैं
जो सच्ची बात कहता हूं तो अफसाना समझते हैं
बहारे जावेदां इसमें जमाले दो जहां इसमें
मेरी दुनिया को फिर भी लोग दीवाना समझते हैं।
बहारे जावेदां इसमें जमाले दो जहां इसमें
मेरी दुनिया को फिर भी लोग दीवाना समझते हैं
शऊरे फिक्र की मैं हर बुलंदी से गुजर आया
मुझे ये अकल वाले फिर भी दीवाना समझते हैं।
कभी का शामिले शोला हूं अहले महफिल क्यों
हयाते नौ को मेरी मर्गे परवाना समझते हैं
हुआ मुझको अबूरे वुसअते अक्लो खिरद हासिल
मगर सब मुझको दीवाने का दीवाना समझते हैं।
निगाहे मस्ते साकी ने किया है बेनियाजे मय
मुझे मयकश अभी पाबंदे पैमाना समझते हैं
अभी तक देख ले थामे हुए हैं होश का दामन
इशारों को तेरे हम पीरे मयखाना समझते हैं।
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रहे फना पे कदम अब बढ़ा रहा हूं मैं
तमाम उम्र की बिगड़ी बना रहा हूं मैं
रविस रविस को सजाया था जिस गुलिस्तां की
उसी के शाखो—सजर को जला रहा हूं मैं
जो हार बनाया था हाथों से अपने खिस्त बा खिस्त
उसी को खाक में अक्सर मिला रहा हूं मैं
बड़े ही शौक से जो आशियां बनाया था
उसे खुद अपने ही हाथों जला रहा हूं मैं
दुआएं मेरी चली हैं कबूल होने को
कि खुद—ब—खुद तेरे कदमों में आ रहा हूं मैं।
रहे फना पे कदम अब बढ़ा रहा हूं मैं
रहे फना पर—मिटने के मार्ग पर।
आत्मघात है संन्यास। आत्मघात है भक्ति।

रहे फना पे कदम अब बढ़ा रहा हूं मैं
तमाम उम्र की बिगड़ी बना रहा हूं मैं।
रविस रविस को सजाया था जिस गुलिस्तां की
उसी को खाक में अक्सर मिला रहा हूं मैं
बड़े ही शौक से जो आशियां बनाया था
वह जो घर अहंकार का बनाया थानीड़! उसे खुद अपने ही हाथों जला रहा हूं मैं।
यह करना ही होता है। यही साधना है। बस यही! और यह जिस दिन पूरी हो जाएउसी दिन सिद्धि उतर आती है।
दुआएं मेरी चली हैं कबूल होने को
कि खुद—ब—खुद तेरे कदमों में आ रहा हूं मैं।

आज इतना ही।


Monday, 22 August 2016

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--07)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--07)

मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरुकरि करिपा अपनायो।
जनम—जनम की पूंजी पाईजग में समय खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवैदिन दिन बधत सवायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरुभवसागर तरि आयो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागरहरखि—हरखि जस गायो।।


नहिं भावे थांरो देसलड़ो रंगरूड़ो।
थारां देसां में राणा साध नहीं छैलोग बसैं सब कूड़ो।
गहना—गांठी राणा हम सब त्यागात्यागो कर रो चूड़ौ।
काजल—टीकी हम सब त्यागात्याग्यो छै बांधन जूड़ो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागरवर पायो छै पूरो।।

मेरा मन रामहि राम रटै रे।
राम नाम जप लीजै प्रानीकोटिक पाप कटै रे।
जनम—जनम के खत जु पुरानेनामहि लेत फटै रे।
कनक कटोरे इम्रत भरियौपीवत कौन नटै रे।
मीरा कहै प्रभु हरि अविनासीतन मन ताहि पटै रे।।

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तुझको मालूम भी है कितने जनम बीत गए,
वादाए तलाखिये अय्याम को पीते—पीते,
तिश्नगी फिर भी तेरी कम नहीं होने पाई,
आज पीने का सलीका मैं सिखाता हूं तुझे,
मै तो मै पुर्दे तहे जाम खुशी से पी जा,
डाल दे फिर मेरी आंखों में तू अपनी आंखें,
इनमें पा जाएगा तू राजे शिकस्ते शीशा,
प्यास बुझ जाएगी सब तेरी हमेशा के लिए,
जुग के जुग बीत गएतुझको नहीं इसकी खबर,
आम दो रफ्त का है सिलसिला कब से जारी,
आज चलने का तरीका मैं बताता हूं तुझे,
दे मेरे हाथ में हाथ और इसी राह पर चल,
भूल जा रंजो सफरछोड़ दे सब फिक्रे मयाल,
खौफे गुमगश्तगी—ओ—दरिए मंजिल का खयाल,
इश्क का पहला कदम ही है नबीदे मंजिल।
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नूर का अपने खुद अमीन है तू।
बस तेरे सौंदर्य की तू ही एक उपमा है।
जानता हूं बहुत हसीन है तू
है ये लेकिन कसूर क्या मेरा।
शौके दीदार तेजतर कर दे,
शोला सामां मेरी नजर कर दे।
फिर तू आ बेनकाब होकर आ
नूरे सद आफताब होकर आ,
जोशे हुस्नो शबाब होकर आ,
शोरिशो इजतराब होकर आ।
है ये लेकिन कसूर क्या मेरा
जो नहीं मुझको ताबे नजारा,
मेरी रग—रग में मस्तियां बन कर,
मेरे दिल में शराब होकर आ
एक नजर से खराब हो जाऊं,
तू खुद ऐसे खराब होकर आ
मुझमें अपना जवाब पैदा कर
फिर तू मेरा जवाब होकर आ।
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अमन दुनिया में है नसीब किसे,
कौन है जो यहां निराश नहीं,
कौन रंजो अलम से है आजाद,
किसको ऐशो तरब की आस नहीं,
दिल में है खाहिशात के तूफां,
बस यही एक आध आस नहीं,
अपना दुखड़ा किसे सुनाने जाएं,
क्या कोई है जो यां उदास नहीं,
तेरे कदमों में है निशाते जां,
कोई दुख दर्द—रंजो यास नहीं।
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ध्यान रूखा—सूखा मार्ग हैप्रार्थनाबड़ी रसपूर्ण।
तेरे ही हुक्म से इक—इक सांस मेरी रवां
तेरे इशारे से पैदा नजर में नक्शो निशां
तेरे ही दम से जबां पर जहूरे लफ्जों बयां
तेरी निगाहे करम ही से रक्शे शोलाए जां
तेरा गुलाम नहीं हूं तो और क्या हूं मैं
तेरी ही बात से बनती है बात बात मेरी
तेरा ही नाम तो है सारी कायनात मेरी
तेरा ही जिक्रे मुकर्रर तो है हयात मेरी
तेरी ही यादे मसलसल का रूप जात मेरी
तेरा गुलाम नहीं हूं तो और क्या हूं मैं
तेरे ही कदमों में रौनक फरोज हर दो जहां
यहीं अदब से झुकाए हैं सर मकानो जमां
यहीं से होता है सबको हसूले अमनो अमां
मैं छोड़ कर तेरे कदमों को जाऊं भी तो कहां
तेरा गुलाम नहीं हूं तो और क्या हूं मैं
यकीनो जोरे अकीदत यहीं से मिलता है
जनूने इश्को मोहब्बत यहीं से मिलता है
शऊरे राजे हकीकत यहीं से मिलता है
सरूरे कैफे मुसर्रत यहीं से मिलता है
तेरा गुलाम नहीं हूं तो और क्या हूं मैं।
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जमाने की हर एक शै अब नई मालूम होती है।
निशात अंगेज हरसू जिंदगी मालूम होती है
तेरे जलवे का परतौ जर्रे—जर्रे में नुमाया है
मेरी आंखों में तेरी रोशनी मालूम होती है
तेरा जलवा मेरी आंखों में कुछ ऐसा समाया है
कि हरेक शक्ले—हंसी सूरत तेरी मालूम होती है
यहां तक हो गई तेरे जलवों से शनासाई
कि तारीकी भी अब तो रौशनी मालूम होती है
मेरा हर दर्द अपना आप दरमां होता जाता है
चमक में आंसुओं की इक हंसी मालूम होती है
मिटाया था तेरी खातिर निशाने अक्शे हस्ती तक
तेरी हस्ती मगर हस्ती मेरी मालूम होती है
कभी कभी खुदी का नाम तक बाकी नहीं रहता
कभी लेकिन खुदी ही बेखुदी मालूम होती है
चिरागे रह बनेंगे एक दिन नक्शे कदम मेरे
अभी रफ्तार मेरी गुमरही मालूम होती है।