Tuesday, 14 July 2015

का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–पहला)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया।..................           ओशो

का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–पहला)


काम क्रोध मद लोभ, छाड़ सब दुंद रे।
का सोवै दिन रैन विरहिनी जागु रे।।
भवसागर की आस, छाड़ सब फंद रे।
फिरि चलु आपन देस, यही भल रंग रे।।
सुन सखि पिय कै रूप, तो बरनत ना बने।
अजर अमर तो देस, सुगंध सागर भरे।।
फूलन सेज संवार, पुरुष बैठे जहां।
हुरै अग्र के चंवर, हंस राजै जहां।।
कोटिन भानु अंजोर, रोम एक में कहां।
उगे चंद्र अपार, भूमि सोभा जहां।।
सेत बरन वह देस, सिंहासन सेत है।
सेत छत्र सिर धरे, अभय पद देत है।।
करो अजपा कै जाप, प्रेम उर लाइए।
मिलो सखी सत पीव, तो मंगल गाइए।।
जुगन जुगन अहिवात, अखंड सो राज है।
पिय मिले प्रेमानंद, तो हंस समाज है।।
कहै कबीर पुकार, सुनो धरमदास हो।
हंस चले सतलोक, पुरुष के पास हो।।
धनुषबाण लिए ठाठ, योगिनी एक माया
छिनहि में करत विगार, तनिक नहिं दाया हो।।
झिरिझिरि बहै बयार, प्रेमरस डोलै हो।
चढ़ि नौरंगिया की डार, कोइलिया बोलै हो।।
पिया पिया करत पुकार, पिया नहिं आया हो।
पिय बिन सून मदिलवा, बोलन लागे कागा हो।।
कागा हो तुम का रे, कियो बटवारा हो।
पिया मिलन की आस, बहुरि न छूटहि हो।।
कहै कबीर धरमदास, गुरु संग चेला हो।
हिलिमिलि करो सतसंग, उतरि चलो पारा हो।।

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ठो कि शब में जमालेसहर तलाश के
हुजूमेखार में गुलहाएतर तलाश करें
लवाएअब्र में ढूंढें फरोगेमाहोनजूम
रिदाएखाक में लालोगुहर तलाश करें
हरीमेजहन के सब झिलमिला रहे हैं चिराग
चलो तअल्लिएशम्मोकमर तलाश करें
रबाबेवक्त पै छेडें तरानेअबदी
दयारेमर्ग में उम्रेखिजर तलाश करें
फिर आओ तनतनेखुसरवी की डालें तरह
फिर आओ ताविशेताजोकमर तलाश करें
तवहम्मात की अफसुर्दा वादियों में शमीम
दमागेगर्मेदिले मअतबर तलाश करें।
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हम सतनाम के बैपारी।
कोईकोई लादे कांसा पीतल, कोईकोई लौंग सुपारी।
हम तो लादा नाम धनी का, पूरन खेप हमारी।
मोतीबिंदु घटहि में उपजै, सुकृत भरत कोठारी।
नामपदारथ लादि चला है, धरमदास बैपारी।
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दास्तानेहयात कुछ तो हो
सूरतेवाकियात कुछ तो हो
गलत अंदाज ही सही लेकिन
निगहेइल्तफात कुछ तो हो
न सही इशरतेहयात मगर
फर्केमौतोहयात कुछ तो हो
हस्तीएबेसबात कुछ भी नहीं
हस्तीएबेसबात कुछ तो हो
महर्बानी ही महर्बानी क्या
महर्बानी में बात कुछ तो हो
दौलतेदर्द मिल गई शम्सी
हासिलेकायनात कुछ तो हो
यहां कुछ हाथ आता कभी लगता नहीं। दास्तानेहयात कुछ तो हो! जीवन कथा यहां है क्या?
दास्तानेहयात कुछ तो हो
सूरतेवाकियात कुछ तो हो
यहां कुछ कभी घटता ही नहीं। सपनों में कहीं कुछ घट सकता है? समय ही जाया होता है। तुम्हारा सारा जीवन एक रिक्त मरुस्थल है।
भवसागर की आस, छाड़ सब फंद रे।
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किस कदर दूर हूं
सख्त मजरू हूं
जज्बएइश्क से
शोलाएतूर हूं
कोई पर्दा नहीं
फिर भी मस्तूर हूं
हंस रही हूं मगर
रंज से चूर हूं
तेरा शिकवा नहीं
खुद ही मजबूर हूं
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वे तसव्वुर में यकायक आ गए
हिज्र की सूरत बदल कर रह गई
ध्यान में एक झलक आ जाती है उनकी कि जहां नरक था वहां स्वर्ग हो जाता है।
वे तसव्वुर में यकायक आ गए
हिज्र की सूरत बदल कर रह गई
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बेखबर मंजिले मकसूद नहीं दूर
मगर आलमे होश से हस्ती को गुजर जाने दो
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सोजे दिलोदर्द आदमीयत के सिवा
औं रंगो, निशानो, चतरो, मुहसे, दिहीन
सब हेच हैं, सब हेच हैं, मुहब्बत के सिवा
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उठाना मेरा साजेहस्ती उठाना
बहुत देर से मुन्तजिर है जमाना
कभी मुस्कराहट कभी चश्मेपुरनम
बस इतनासा है जिंदगी का फसाना
तेरे इक न होने से हैं बेहककित
यह रंगी फजाएं, यह मौसम सुहाना
शबेटाम सितारे भी बुझने लगे हैं
मेरे दिल के दागो कोई लौ बढ़ाना
कोई छेड़ दे नग्महाएमुहब्बत
बहुत गौर से सुन रहा है जमाना
तेरी याद ही वजहेतस्कीनेदिल है
बड़ा ही करम है, तेरा याद आना
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कुछ खबर हो सकी न तरे बगैर
कब बहार आयी, कब खिजां आई
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ये किसके अश्क थे जो बन गए तबस्सुमेगुल
ये किसके दिल की तमन्ना, बहार हो के रही
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साजेउम्मीद बजा
नग्मएशौक सुना
तीर इक और लगा
दर्देदिल और बढ़ा
देख ले आज फजा
सागरेशौक उठा
कलियां उम्मीद की चुन
दामने दिल को सजा
मेरा गम कुछ भी न कर
अपना अफसाना सुना
आज गमगीन है दिल
मेरे जख्मों को हंसा
कुछ बता भी तो मुझे
का सौवें दिन रैन
क्यों हुआ मुझसे खफा?
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चमन में जश्रेउरूसेबहार है, आ जा
उरूसेनग्मा सरेआबशार है, आ जा
हरएक जुम्बिशे गुल में हजार नग्मे हैं
हरइक नसीम का झोंका बहार है, आ जा
सरूरबख्श घटाओं के मस्त साये में
जमालेलालगुल ताबदार है, आ जा
रविशरविश पै छिड़ी है हदीसेलालगुल
कलीकली को तेरा इंतजार है, आ जा
तुझे खबर भी है इस मौसमेंबहार में भी
शमीमनाविकेगम का शिकार है आ जा।
शिष्य पुकारता है। शिष्य रोता है। शिष्य झुकता है। गुरु भी पुकारता है। गुरु भी बहता है। गुरु भी झुकता है।
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