जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा।
और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया।.................. ओशो
का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–पहला)
काम क्रोध मद लोभ, छाड़ सब दुंद रे।
का
सोवै दिन रैन विरहिनी जागु रे।।
भवसागर
की आस, छाड़ सब फंद रे।
फिरि
चलु आपन देस, यही भल रंग रे।।
सुन
सखि पिय कै रूप, तो बरनत ना बने।
अजर
अमर तो देस, सुगंध सागर भरे।।
फूलन
सेज संवार, पुरुष बैठे जहां।
हुरै
अग्र के चंवर, हंस राजै जहां।।
कोटिन
भानु अंजोर, रोम एक में कहां।
उगे
चंद्र अपार, भूमि सोभा जहां।।
सेत
बरन वह देस, सिंहासन सेत है।
सेत
छत्र सिर धरे, अभय पद देत है।।
करो
अजपा कै जाप, प्रेम उर लाइए।
मिलो
सखी सत पीव, तो मंगल गाइए।।
जुगन
जुगन अहिवात, अखंड सो राज है।
पिय
मिले प्रेमानंद, तो हंस समाज है।।
कहै
कबीर पुकार, सुनो धरमदास हो।
हंस
चले सतलोक, पुरुष के पास हो।।
धनुष—बाण लिए ठाठ, योगिनी एक माया
छिनहि
में करत विगार, तनिक नहिं दाया हो।।
झिरि—झिरि बहै बयार, प्रेम—रस डोलै हो।
चढ़ि
नौरंगिया की डार, कोइलिया बोलै हो।।
पिया
पिया करत पुकार, पिया नहिं आया हो।
पिय
बिन सून मदिलवा, बोलन लागे कागा हो।।
कागा
हो तुम का रे, कियो बटवारा हो।
पिया
मिलन की आस, बहुरि न छूटहि हो।।
कहै
कबीर धरमदास, गुरु संग चेला हो।
हिलिमिलि
करो सतसंग, उतरि चलो पारा हो।।
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उठो कि शब में जमाले—सहर तलाश के
हुजूमे—खार में गुलहाएतर तलाश करें
लवाए—अब्र में ढूंढें फरोगे—माहो—नजूम
रिदाए—खाक में लालो—गुहर तलाश करें
हरीमे—जहन के सब झिलमिला रहे हैं चिराग
चलो तअल्लिए—शम्मो—कमर तलाश करें
रबाबे—वक्त पै छेडें तराने—अबदी
दयारे—मर्ग में उम्रे—खिजर तलाश करें
फिर आओ तनतने—खुसरवी की डालें तरह
फिर आओ ताविशेताजो—कमर तलाश करें
तवहम्मात की अफसुर्दा वादियों में ”शमीम”
दमागे—गर्मे—दिले मअतबर तलाश करें।
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हम सतनाम के बैपारी।
कोई—कोई लादे कांसा पीतल, कोई—कोई लौंग सुपारी।
हम तो लादा नाम धनी का, पूरन खेप हमारी।
मोती—बिंदु घटहि में उपजै, सुकृत भरत कोठारी।
नाम—पदारथ लादि चला है, धरमदास बैपारी।
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दास्ताने—हयात कुछ तो हो
सूरते—वाकियात कुछ तो हो
गलत अंदाज ही सही लेकिन
निगहे—इल्तफात कुछ तो हो
न सही इशरते—हयात मगर
फर्के—मौतो—हयात कुछ तो हो
हस्तीए—बेसबात कुछ भी नहीं
हस्तीए—बेसबात कुछ तो हो
महर्बानी ही महर्बानी क्या
महर्बानी में बात कुछ तो हो
दौलते—दर्द मिल गई ”शम्सी”
हासिले—कायनात कुछ तो हो
यहां कुछ हाथ आता कभी लगता नहीं।
दास्ताने—हयात
कुछ तो हो! जीवन कथा यहां है क्या?
दास्ताने—हयात कुछ तो हो
सूरते—वाकियात कुछ तो हो
यहां कुछ कभी घटता ही नहीं। सपनों
में कहीं कुछ घट सकता है? समय
ही जाया होता है। तुम्हारा सारा जीवन एक रिक्त मरुस्थल है।
भवसागर की आस, छाड़ सब फंद रे।
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किस कदर दूर हूं
सख्त मजरू हूं
जज्बए—इश्क से
शोलाएतूर हूं
कोई पर्दा नहीं
फिर भी मस्तूर हूं
हंस रही हूं मगर
रंज से चूर हूं
तेरा शिकवा नहीं
खुद ही मजबूर हूं
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वे तसव्वुर में यकायक आ गए
हिज्र की सूरत बदल कर रह गई
ध्यान में एक झलक आ जाती है उनकी कि
जहां नरक था वहां स्वर्ग हो जाता है।
वे तसव्वुर में यकायक आ गए
हिज्र की सूरत बदल कर रह गई
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बेखबर मंजिले — मकसूद नहीं दूर
मगर आलमे होश से हस्ती को गुजर जाने
दो
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सोजे दिलो—दर्द आदमीयत के सिवा
औं रंगो, निशानो, चतरो, मुहसे, दिहीन
सब हेच हैं, सब हेच हैं, मुहब्बत के सिवा
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उठाना मेरा साजे—हस्ती उठाना
बहुत देर से मुन्तजिर है जमाना
कभी मुस्कराहट कभी चश्मे—पुरनम
बस इतना—सा है जिंदगी का फसाना
तेरे इक न होने से हैं बे—हककित
यह रंगी फजाएं, यह मौसम सुहाना
शबे—टाम सितारे भी बुझने लगे हैं
मेरे दिल के दागो कोई लौ बढ़ाना
कोई छेड़ दे नग्महाए—मुहब्बत
बहुत गौर से सुन रहा है जमाना
तेरी याद ही वजहेतस्कीने—दिल है
बड़ा ही करम है, तेरा याद आना
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कुछ खबर हो सकी न तरे बगैर
कब बहार आयी, कब खिजां आई
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ये किसके अश्क थे जो बन गए तबस्सुमे—गुल
ये किसके दिल की तमन्ना, बहार हो के रही
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साजे—उम्मीद बजा
नग्मए—शौक सुना
तीर इक और लगा
दर्दे—दिल और बढ़ा
देख ले आज फजा
सागरे—शौक उठा
कलियां उम्मीद की चुन
दामने दिल को सजा
मेरा गम कुछ भी न कर
अपना अफसाना सुना
आज गमगीन है दिल
मेरे जख्मों को हंसा
कुछ बता भी तो मुझे
का सौवें दिन रैन
क्यों हुआ मुझसे खफा?
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चमन में जश्रे—उरूसे—बहार है, आ जा
उरूसे—नग्मा सरे—आबशार है, आ जा
हर—एक जुम्बिशे गुल में हजार नग्मे हैं
हर—इक नसीम का झोंका बहार है, आ जा
सरूरबख्श घटाओं के मस्त साये में
जमाले—लाल—ओ—गुल ताबदार है, आ जा
रविश—रविश पै छिड़ी है हदीसे—लाल—ओ—गुल
कली—कली को तेरा इंतजार है, आ जा
तुझे खबर भी है इस मौसमें—बहार में भी
” शमीम” नाविके—गम का शिकार है आ जा।
शिष्य पुकारता है।
शिष्य रोता है। शिष्य झुकता है। गुरु भी पुकारता है। गुरु भी बहता है। गुरु भी
झुकता है।
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