Sunday, 19 July 2015

का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–6)

दरिया की जिंदगी पर सदके हजार जानें
मुझको नहीं गवारा साहिल की मौत मरना
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रहे हयात में मुडमुड़ के नक्शेपा को न देख
मह और सितारे की शाने खिराम पैदा कर।
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खिजां की लूट से बरबादिए चमन तो हुई
यकीन आमदे फस्लेबहार कम न हुआ
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चमन में छेड़ती है किस मजे से गुंच ओ गुल को
मगर मौजेसबा की पाक दामानी नहीं जाती
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मुझको दिल सोज नजारों का खयाल आता है
उजड़े गुलशन की बहारों का खयाल आता है
जब कोई गीत मचलता है मेरे होठों पर
दिल के टूटे हुए तारों का खयाल आता है
डूब जाते हैं वही जोरेतलातुम में नदीम!
जिनको का में कनारों का खयाल आता है
उनको ऐ साहिरामिलती नहीं मंजिल अपनी
जिनको का में सहारों का खयाल आता है।
सुरक्षा छोड़ो! सहारे छोड़ो! किनारे छोड़ो!
डूब जाते हैं, वही जोरेतलातुम में नदीम।
तूफान में केवल वे ही डूबते हैं, सिर्फ वे ही——
डूब जाते हैं वही जोरेतलातुम में नदीम
जिनको का में कनारों का खयाल आता है
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सुर्ख कलियां सुर्ख पते सुर्ख फूल
सुर्ख तूफां सुर्ख आधी सुर्ख धूल
और हर सुर्खी में सुर्खिएशराब
इकिलाबो इकिलाबो इंकिलाब।
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दिल में सोजेटाम की इक दुनिया लिए जाता हूं मैं
आह तेरे मैकदे से बेपिए जाता हूं मैं
जातेजाते लेकिन इक पैमा किए जाता हूं मैं
अपने अज्मेसरफरोशी की कसम खाता हूं मैं
फिर तेरी बज्मेहसीं में लौटकर आऊंगा मैं
आऊंगा मैं औरअंदाजेदिगर आऊंगा मैं
आहवे चक्कर दिए हैं, गर्दिशेऐयाम ने
खोलकर रख दी हैं आंखें तल्खिएआलाम ने
फितरतेदिल दुश्मनेनग्म: हुई जाती है अब
जिंदगी इक बर्क इक शोल: हुई जाती है अब
सर से पा तक एक खूनी आग बनकर आऊंगा
लाल : जारे रंगोबू में आग बनकर आऊंगा
जा तो सकते हो, लेकिन खाली हाथ जाओगे। या तो भरे हाथ जाना और या फिर कमसेकम इस प्यास को लेकर जाना कि जातेजाते लेकिन इक पैमा किए जाता हूं, मैं एक वादा किए जाता हूं।
अपने अज्मेसरफरोशी की कसम खाता हूं मैं
फिर तेरी बज्मेहसीं में लौटकर आऊंगा मैं
आऊंगा मैं और अंदाजे दिगर आऊंगा मैं
आना ही पड़ेगा।
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जलालेआतिशोबर्कोसहाब पैदा कर
अजल भी कांप उठे वह शबाब पैदा कर
तेरे खसम में है जलजलों का राज निहा
हरएक गाम पर इक इंकिलाब पैदा कर
बहुत लतीफ है ऐ दोस्त! तेग का बोसा
यही है जानेजहां इसमें आब पैदा कर
तेरा शबाब अमानत है सारी दुनिया की
तू खारजारेजहां में गुलाब पैदा कर
तू इंकिलाब की आमद का इंतजार न कर
जो हो सके तो अभी इंकिलाब पैदा कर
तुम प्रतीक्षा मत करो कि क्रांति आएगी। क्रांति कभी नहीं आती। क्रांति में जाना होता है।
तू इंकिलाब की आमद का इंतजार न कर
जो हो सके तो अभी इंकिलाब पैदा कर
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जाम गिर पड़ता है साकी थरथरा जाते हैं हाथ
तेरी आंखें देख कर नश्‍शा में आ जाती हूं मैं
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इक निगाह कर के उसने मोल लिया
बिक गए आह! हम भी क्या सस्ते
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जी खोलकर कुछ आज तो रोने दे हमनशीं
मुद्दत हुई है दर्द का दरमां किए हुए
वह बह गयी होगी धारा, फूट गया होगा बांध।
मेरा भय बह गया। मैं आंसुओ में नहा गयी। अब कोई आशंका नहीं, कोई भय नहीं।
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उठें फिर फस्लेगुल में आरजुओं को जवा कर दें
चलें फिर बुलबुलों को आशनाये गुलसितां कर दें
बसा लो यह बगिया! खिल जाने दो यह फूल! थोड़ी हिम्मत चाहिए।
और ऐसे भी जिंदगी तो जा रही है, चली ही जाएगी, मौत सब छीन ही लेगी —— उसके पहले दांव पर लगा लो।
चश्मेतर। देख गमेदिल न नुमायां हो जाए
इश्क के सामने और हुस्न पशेमा हो जाए
जानता हूं मैं तमन्ना को गुनाहेउल्फत
इश्क वह है जो निहा रह के नुमायां हो जाए
प्रेम तो चुपचाप विलीन हो जाता है।
इश्क वह है जो निहा रह के नुमायां हो जाए
——जो बोले भी न, कहे भी न——चुपचाप झुके और लीन हो जाए।
अपनी मजकूरइएउल्फत का फसाना कह कर
हर रहा हूं कि कहीं वह न पशेमा हो जाए
दागेउल्फत की तज्जली जो नुमायां हो जाए
शोलएतूर भी इक बार पशेमा हो जाए
जब्तेगम से नहीं याराएखामोशी मुझको
तुम जो कुछ पूछो तो मुश्किल मेरी आसा हो जाए
शिष्य तो पूछ भी नहीं सकता। पूछता है तो जानता है कि जो पूछना था वह चूक गया, वह शब्द में नहीं आया। लेकिन शिष्य पूछे या न पूछे, गुरु उत्तर देता ही है। तुम्हारे बहुत से न पूछे गए प्रश्रों के उत्तर भी रोज मैं देता हूं। जिनने नहीं पूछे हैं, उनके उत्तर भी देता हूं। जो मुझसे जुडे हैं उनकी खबर तो हो जाती है; उनकी जरूरत मुझे पता चल जाती है।
जब्तेगम से नहीं याराएखामोशी मुझको
तुम जो कुछ पूछो तो मुश्किल मेरी आसा हो जाए
काश यूं बर्क गिरे खिरमनेदिल पर मखफी
जर्राजरी मेरी हस्ती का फरोजा हो जाए
काश यूं बर्क गिरे खिरमनेदिल पर! यह जो दिल की खलिहान गिरे——ऐसी गिरे, ऐसी गिरे——”जर्राजर्रा मेरी हस्ती का फरोजा हो जाये, कि मेरा कण कण रोशन हो उठे।

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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

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