Sunday, 19 July 2015

का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–4)



कुछ ऐसी ही फजा, ऐसी ही शब, ऐसा ही मंजर था
न जाने क्या मुझे भा गया तारों की झिलमिल में
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मैं आह करके अपने खयालों में खो गया
कुछ जिक्र था बहारोशबे माहताब का
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सहर के झुटपुटे में जब परिंदे चहचहाते हैं
मनाजिर सुबह के जिस दम रसीले गीत गाते हैं
बहारों के जिलौमें दिलरुबा नग्मे लुटाते हैं
हंसी गुचे चमन में सुबह दम जब मुस्कराते हैं
तुम ऐसे में मुझे बेसाख्ता क्यों याद आते हो;
शफक जब झांकती है दामनों से कोहसारों के
फजा में थरथराते हैं तराने आबशारों के
हवा में तैरने लगते हैं नक्शे जूए’— बाले के
बयाबां जब बदल लेते हैं चोले सब्जा जारों के
तुम ऐसे में मुझे बेसाख्ता क्यों याद आते हो;
परी कौसेकुजा की आस्मां पर जब संवरती है
अदाएदिलबरी से रंग के सांचो में ढलती है
सबा के मुश्कबू झोंकों से निकहत टूट पड़ती है
बहार आकर चमन की जब गुलों से मांग भरती
तुम ऐसे में मुझे बेसाख्ता क्यों याद आते हो;
कनारे आब का नज्जारा जब मदहोश होता है
दरख्शां रेत का मैदान जब जरपोश होता है।
कंवल आबे रवा की जीनते आगोश होता है
हंसी लहरों के दिल में जज्बए पुरजोश होता है
तुम ऐसे में मुझे बेसाख्ता क्यों याद आते हो;
खुनक रातों की भीनीभीनी जब महकार होती है
सितारों की नजर जब वाकिफेइसरार होती है
किसी शाइर की चश मे रूह जब बेदार होती है
मेरे पिदार के तारों में जब झंकार होती है
तुम ऐसे में मुझे बेसाख्ता क्यों याद आते हो?
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वासना का इनकार नास्तिकता है। वासना का स्वीकार आस्तिकता है।
जीस्त को पुरबहार क्या करते
दिल ही था सोगवार क्या करते
आपके गम की बात है वर्ना
खुद को हम बेकरार क्या करते
आपका ऐतबार ही कब था
आपका इंतजार क्या करते
थी हमें क्या बहार से उम्मीद
हम उम्मीदे-बहार क्या करते
जीस्त पर कब हमें भरोसा था
आप पर एतबार क्या करते
थे न जिनको अजीज खारे-चमन
वह भला गुल से प्यार क्या करते
शमीय:जब न शब ही रास आई
सुबह का इंतजार क्या करते
थोड़ा समझो।
आपका ऐतबार ही कब था
आपका इंतजार क्या करते
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आपका ऐतबार ही कब था
आपका इंतजार क्या करते
थी हमें क्या बहार से उम्मीद
हम उम्मीदे-बहार क्या करते
जीस्त पर कब हमें भरोसा था
आप पर ऐतबार क्या करते।
जिंदगी पर ही जिसको भरोसा नहीं है, वह जिंदगी को बनानेवाले पर भरोसा नहीं कर सकता।
जीस्त पर कब हमें भरोसा था
आप पर ऐतबार क्या करते।
जिसको कांटों से प्रेम नहीं है, वह फूलों से भी प्रेम नहीं कर सकेगा। और जिसे फूलों से प्रेम है उसे कांटों से भी प्रेम होगा। क्योंकि वह समझेगा कि कांटे और फूल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
थे न जिनको अजीज खारे-चमन
वह भला गुल से प्यार क्या करते
शमीय:जब न शब ही रास आई
सुबह का इंतजार क्या करते
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कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीम-कश को
यह खलिश कहां से होती, जो जिगर के पार होता
वह जो तीर लगा है, वह छिद गया है। पार भी नहीं हो गया है, इसलिए बड़ी खलिश होती है।
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इशरते कतरा है दरिया में फना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना
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मुहब्बत का एजाज मैं क्या कहूं
बढ़ा दर्द, बढ़कर दवा हो गया
जानोगे एक दिन कि पीड़ा एक दिन पीड़ा से मुक्ति का कारण हो जाती है- -इतनी बढ़ जाती है।
मुहब्बत का एजाज मैं क्या कहूं
प्रेम की गरिमा कहीं नहीं जाती, कहना मुश्किल है।
मुहब्बत का एजाज मैं क्या कहूं
बढ़ा दर्द बढ़कर दवा हो गया
बढ़ने दो दर्द! मगर दर्द गीत है दर्द गाता हुआ है, नाचता हुआ है। दर्द उदास नहीं है। पीड़ा मधुर है, मीठी है। और फिर यह जो पीड़ा है, छिपती नहीं। भक्त के आंसुओ से निकलेगी। भक्त के नृत्य में निकलेगी। भक्त के गीत में निकलेगी। भक्त के मौन में निकलेगी।
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प्रेम छिपायो ना छिपे जा घट परकट होय।
जो पै मुख बोलै नहीं नैन देत हैं रोय।।
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क्या पसंद है तुम्हें
भय या अभय?
लय दोनों में है
किंतु मैं तो इन दिनों
प्रलय सोच रहा हूं
सो भी छंद में
स्वर में, सुगंध में!
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खुदा जाने क्या आफतें सर पर आएं
उन्हें आज फिर महरबां देखता हूं
जैस-जैसे परमात्मा की कृपा तुम पर होगी वैसे-वैसे घबड़ाहट बढ़ेगी।
खुदा जाने क्या आफतें सर पर आएं
उन्हें आज फिर महरबां देखता हूं
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ए दिल न छेड़ किस्सए-फुर्सुदी इश्क का
उलझा न अहले बज्म को इस खार जार में
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इस इंतहाएतर्के-मुहब्बत के बावजूद
हमने लिया है नाम तुम्हारा कभी-कभी
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मैं तेरे गम से बहुत दूर चली जाऊंगी
किसी प्रेयसी ने गाया है
मैं तेरे गम से बहुत दूर चली जाऊंगी
तुझको इक यास का उनवान बना जाऊंगी
नूर में डूबी हुई चांदनी रातों की कसम
शबनमी भीगी हुई सावनी रातों की कसम
बर्फ-सी सहमी हुई सुर्मयी रातों की कसम
जगमगाते हुए तारों की बरातों की कसम
मैं तेरे गम से बहुत दूर चली जाऊंगी
तुझको इक यास का उनवान बना जाऊंगी
सर्द रातों में चमकते हुए तारों की कसम
फूल बरसाती हुई मस्त बहारों की कसम
सुबहे-बेदार के शादाब नजारों की कसम
रोदे बानास के सरसब्ज किनारों की कसम
मैं तेरे गम से बहुत दूर चली जाऊंगी
तुझको इक यास की उनवान बना जाऊंगी
जल्वए-हुस्न की हर शाने-जमाली की कसम
इश्क में जब्त की आदाते-मिसाली की कसम
बेनियाजी के हर अंदाजे-जमाली की कसम
अर्शे-आजम के फसूं साज कमाली की कसम
मैं तेरे गम से बहुत दूर चली जाऊंगी
तुझको इक यास का उनवान बना जाऊंगी
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मुझे एक झरोखा बना लो।
आज इतना ही।
28.621809 77.163615


जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

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