Monday, 27 July 2015

का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–9)





ह मैकदा है मगर अब वह लुत्फे आम कहां?
वह रक्शेजाम वह रिदानेतिश्‍नाकाम कहां?
गुदाजेसीनएमुतरिब न सोजेनग्मएनै
वह बेकरारिएमहफिल का एहतमाम कहां?
इधर तही है सुबू, उस तरफ तही सागर!
वह बादारेजिएमहफिल की सुबहोशाम कहां?
मिटे हुएसे हैं कुछ नक्शेपा जरूर मगर
रहे तलब में वह यारानेतेजगाम कहां?
नवाएवक्त बहुत गुलफिशां सही लेकिन
वह जा नवाज मुहब्बत अदा पयाम कहा?
श्मीमेशामेमुहब्बत को क्या करूं अख्तर”!
नसीमेसुबहेत्तमन्ना का वह खसम कहां?
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मुझे खुद भी खबर नहीं ”अख्तर”
जी रहा हूं कि मर रहा हूं मैं।[phe
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चमन अपना न गुल अपना न कोई बागवा अपना
तबीयत बुझ गई उजड़ा खुशी का गुलसिता अपना।
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चांदनी, मौसमेगुल, सहनेचमन, खिलवतेनाज
ख्वाब देखा था कि कुछ याद है कुछ याद नहीं।
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वस्ल का दिन और इतना मुख्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए।
क्षण आते हैं, पाते क्या हो; और कितनी गिनती की थी कितनी प्रतीक्षा की थी।
वस्ल का दिन और इतना मुख्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए।
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जबानेशौक पै उनका ही नाम रहता है
उन्हीं की याद से हर लहजा काम रहता है
नजर को सागरेगम में डुबोए रहती हूं
तसव्वुरात की दुनिया में खोए रहती हूं
न होशेहाल न एहसासेहाल रहता है
बस एक सिर्फ उन्हीं का खयाल रहता है
हजार दिल से हम उनको भुलाए जाते हैं
न जाने क्यों वह हमें याद आए जाते हैं
अंधेरी रात में भी मंजरेदरख्शां हैं
जिधर निगाह उठाती हूं वोह नुमायां हैं
सबा के दोश पै उनके सलाम आते हैं
सतारे लेके नया इक पयाम आते हैं
सतनामै जपु, जग लड़ने दे।।
आज इतना ही।
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 सूत्र:

कहंवा से जीव आइल, कहंवा समाइल हो।
कहंवा कइल मुकाम, कहां लपटाइल हो।।
निरगुन से जिव आइल, सरगुन समाइल हो।
कायागढ़ कइल मुकाम, माया लपटाइल हो।।
एक बूंद से कायामहल उठावल हो।
बूंद पड़े गलि जाय, पाछे पछतावल हो।।
हंस कहै, भाई सरवर, हम उड़ि जाइब हो।
मोर तोर एतन दिदार, बहुरि नहिं पाइब हो।।
इहवां कोइ नहिं आपन, केहि संग बोलै हो।
बिच तरवर मैदान, अकेला हंस डोलै हो।।
लख चौरासी भरनि, मनुषतन पाइल हो।
मानुष जनम अमोल, अपन सों खोइल हो।।
साहेब कबीर सोहर सुगावल, गाइ सुनावल हो।
सुनहु हो धरमदास, रही चित चेतहु हो।।
सतनामै जपु, जग लड़ने दे।।

           यह संसार कांट की बारी, अरुझिअरुझि के मरने दे।
हाथी चाल चलै मोर साहेब, कुतिया भुकै तो भुकने दे।।
यह संसार भादो की नदिया, डूब मरै तेहि मरने दे।
धरमदास के साहेब कबीरा, पत्थर पूजै तो पुजने दे।।
    जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–8)



मुहब्बत में कुछ कामत और भी हैं
तेरे गम के कुछ सजदा और भी हैं
संभल कर जरा जल्वएतूरेमूसा
हरीफे रुखे कहकशां और भी हैं
कमर को हैं बेवजह क्यों नाजे बेजा
सबाबे गुलोगुलसिता और भी हैं
और भी बगीचे हैं, और भी पर्वतमालाएं हैं।
कमर को है बेवजह क्यों नाजे बेजा? ” इस चंद्रमा में ही मत अटक जाना। यह चंद्रमा व्यर्थ ही गुमान कर रहा है।
कमर को है बेवजह क्यों नाजे बेजा
सबाबे गुलोगुलसिता और भी हैं
उद्यान और भी हैं, फूल और भी हैं।
अभी नामुकम्मलसी बरबादिया हैं
निगाहों में कुछ बिजलियां और भी हैं
लबों पर ही रक्सां नहीं गीत उनके
निगाहों में राजे निहा और भी हैं
मयस्सर नहीं सर्पेगम तुमको रैना
तुम्हारे सिवा कामत और भी हैं

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–7)



का सोवै दिन रैन–(प्रवचन–7)


मुहब्बत एक राज है
वह राज——रूह में रहे जो हुस्न बन के जल्वागर
निगाह जिसके दीद की न ताब लाए उम्रभर
शऊर से बुलन्‍दतर
मुहब्बत एक राज है।
मुहब्बत एक नाज है
वह नाज——जो हयात को निशातेजाविदां करे
जमीं के रहनेवालों को जो अर्शेआशियां करे
न फर्के इआं करे
मुहब्बत एक नाज है।
मुहब्बत एक ख्वाब है
वह ख्वाब —— जिसकी सरखुश पे जन्नतें निसार हों
फसाना साजेजिंदगी की इशरतें निसार हों
हकीकतें निसार हों
मुहब्बत एक ख्वाब है।
मुहब्बत एक निगार है
तमाम सिदकोसादगी, तमाम हुस्नोकाफिरी
तमाम शोरिशोखलिश मगर बतर्जेदिलबरी
शिकस्त जिसकी बरतरी
मुहब्बत इक निगार है।
प्रेम एक रहस्य है। सबसे बड़ा रहस्य! रहस्यों का रहस्य!
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जिंदगी साज दे रही है मुझे
सहर और एजाज दे रही है मुझे
और बहुत दूर आसमांनों से
मौत आवाज दे रही है मुझे
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देखा तेरे कूचे में जो नज्जारेजन्नत
जन्नत में न देखा तेरे कूचे का नजारा
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मैं सर तो झुकाती हूं तेरे हुक्म में लेकिन
दिल को मेरे राजी व रजा कौन करेगा?
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निकल जाएंगे रफ्ता रफ्ता सब अरना
कोई आह बन कर कोई जान बन कर
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आसमां आज भी नालों से हिला सकता हूं
मैं जो खामोश हूं इसका भी सबब है कोई
जो गुरु के साथ जुड़ गया, खामोश होने लगता है। ऐसा नहीं है कि मर गया।
आसमां आज भी नालों से हिला सकता हूं
मैं जो खामोश हूं, इसका भी सबब है कोई
सबब इतना ही है कि अब व्यर्थ हो गया। अब दिखायी पड़ने लगा।
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मेरे दिल मायूस में क्योंकर न हो उम्मीद
मुर्झाए हुए फूल में क्या यू नहीं होती?
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जहां उजड़ा वहीं तामीर होगा आशियां अपना
तड़पती बिजलियों पर हंस रहा है गुलसिता अपना
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खुदा अगर दिलेफितरत सनात दे तुझको
सकूते लालागुल से कलाम पैदा कर
अगर परमात्मा संपदा दे तो फिर सब कुछ उस संपदा को लुटाने में लगा देना।
सकूते लालागुल से कलाम पैदा कर
तेरी नजर से चमनजार सरमदी बन जाए
कलीकली की जबां से पयाम पैदा कर
फिर एकएक जीवन की कली से उसका ही संदेश। आंख से, हाथ से, पैर से, उठनेबैठने से, बोलने से, चुप होने से——उसका ही संदेश!
ऐ जवानानेवतन रूह जवा है तो उठो
आंख इश महशरेनौ की निगरा है तो उठो
खौफेबेहुरमतीफिक्रे जिया है तो उठो
पासेनामूसेनिगारानेजहा है तो उठो
उट्ठो नक्कारएअफलाक बजा दो उठ कर
एक सोए हुए आलम को जगा दो उठ कर
दूर इंसान के सर से यह मुसीबत कर दो
आग दोजख की बुझा दो उसे जन्नत कर दो
जिन में भी थोड़ी सामर्थ्य है, वे पहले अपने भीतर जाएं, जगें! और जब जग जाएं तो जगाए।
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सूत्र:
सतगुरु सरन में आइ, तो तामस त्यागिये।
ऊंच नीच कहि जाय, तो उठि नहिं लागिये।।
उठि बोलै रारै रार, सो जानो घींच है।
जेहि घट उपजै क्रोध, अधम अरु नीच है।।
माला वाके हाथ, कतरनी कांख में।
सूझै नाहिं आगि, दबी है राख में।।
अमृत वाके पास, रुचै नहिं रांड को।
स्वान को यही स्वभाव, गहै निज हाड़ को।।
का भे बात बनाए, परचै नहिं पीव सों।
अंतर की बदफैल, होइ का जीव सों।।
कहै कबीर पुकारि सुनो धरम आगरा।
बहुत हंस लै साथ, उतरो भव सागरा।।
सूतल रहलौं मैं सखियां, तो विष कर आगर हो।
सतगुरु दिहलै जगाइ, पायौं सुख सागर हो।।
जब रहली जननी के ओदर, परन सम्हारल हो।
जब लौं तन में प्रान, न तोहि बिसराइब हो।।
एक बुंद से साहेब मदिल बनावल हो।
बिना नेव के मदिल बहु कल लागल हो।।
इहवां गावं न ठांव, नहीं पुर पाटन हो।
नाहिन बाट बटोहि, नहीं हित आपन हो।।
सेमल है संसार, भुवा उघराइल हो।
सुंदर भक्ति अनूप, चले पछिताइल हो।।
नदी बहै अगम अपार, पार कस पाइब हो।
सतगुरु बैठे मुख मोरि, काहि गोहराइब हो।।
सतनाम गुन गाइब, सत ना डोलाइब हो।
कहै कबीर धरमदास, अमर घर पाइब हो।।
आज इतना ही।
 


जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो