इन वचनों को स्मरण रखना:
अगर मैं तिलस्मे—तकल्लुम दिखा दू
तरानों से बज्मे—सुरैया बना दू
तरब—आशना तल्ख आहों को कर दूं
कबाए—हवादस के पुर्जे उड़ा दू
अगर चर्ख को अज्म दूं बंदगी का
दरे खाक पर माहेताबां झुका दूं
अगर नग्लए—सरमदी छेड़ दूं मैं
खिजां में गुलों को महकना सिखा दू
अजल भी मेरे गम पै आंसू बहाए
अगर नालए जिंदगानी सुना दू
अगर छेड़ दूं साज खिलवत में तेरी
चिरागों को ताके हरम से गिरा दूं
कहो तो बदल दूं निजामे—दो आलम
जहन्नम में फूलों की जन्नत बसा दूं
गुलिस्तां का हर फूल दिल बन के महके
अगर एक अश्के–तमन्ना गिरा दूं
”शमीम” आह कर दूं तो लौ दे जमाना
फजा मुसकरा दे अगर मुसकरा दूं
महरूमिएतकदीर का इल्जाम कहां तक?
दुनिया को जरूरत है तेरे इज्मे जवा की
सर गुश्ता रहेगा सिफ्ते—जाम कहां तक?
लैला—ए—हककित से भी हो जा कभी दो—चार
ख्वाबों की हसी छांव में आराम कहां तक?
रुख गर्दिशे—दौरा का पलट सकता है तू खुद
नादां गिलए—गर्दिशे—ऐम्याम कहां तक?
जुज—वहम नहीं, कैदे—रहो—रस्मे जमाना
ऐ ताइरे आजाद! तहे—दाम
कहां तक?
रात की देवी के माथे पै चुनी है अफ्शां
या कुछ अश्कों के चराग
हैं किसी राहगुजर में लर्जां
आह यह सुर्मई आकाश, यह तारों के शरार
यह मेरे दिल को खयाल आता है
दम अंधेरे में घुटा जाता है
क्यों न ईवाने—तसव्बुर में जला लूं शमएं
बरबतो—चंगो—रबाब
मुंतजिर हैं मेरे मिजराब की एक जुंबिश के
जिंदगी क्यों फकत एक आहे—मुसलसल ही रहे
क्यों न बेदार करूं वो नग्मे
वक्त भी सुन के जिन्हें थम जाए
रहगुजारों में ये बहता हुआ जूं
मौत के साए तले सिसकियां भरती है हयात
इस उमड़ते हुए का से किनारा कर लूं
ये सिसकती हुई लाशें, ये हयाते मुर्दा
ये जबीनें जिन्हें सज्दों से नहीं है फुरसत
ये उमंगें जिन्हें फाकों ने कुचल डाला है
यह बिलकती हुई रूहें, ये तड़पते हुए दिल
इन ढकलते हुए अश्कों को चुराकर मैं भी
अपने ईवाने—तसस्मृर में गल’ कर लूं
देखकर रात की देवी का सिंगार
वहम आता है मगर
नग्म:—ओ नै का सहारा लेकर
जिंदगी चल भी सकेगी कि नहीं;
इन सितारों की दमकती हुई कदीलों से
रात के दिल की सियाही भी मिटेगी कि नहीं।
आकाश को देखा है—तारों से भरा! ऐसे ही तारों से तुम भी भर सकते हो। रात चुनरी देखी आकाश की! ऐसी ही चुनरी तुम्हारा भी परिधान बन सकती है
देख तू सुर्मई आकाश पै तारों का निखार
रात की देवी के माथे पै चुनी है अफ्शां
रात की देवी के माथे पर चुन्नी है तारों की।
या कुछ अश्कों के चराग। या आंसुओ के टिमटिमाते दीपक। हैं किसी राहगुजर में लर्जा
और यह सुर्मई आकाश यह तारों के शरार
यह मेरे दिल को खयाल आता है
दम अंधेरे में घुटा जाता है
ढलके—ढलके आंसू ढलके
छलके—छलके सागर छलके
दिल के तकाजे उनके इशारे
बोझल—बोझल हल्के—हल्के
देखो—देखो दामन उलझा
ठहरो—ठहरो सागर झलके
उनका तगाफुल उनकी तवज्जा
इक दिल, उस पर लाख तहलके
उनकी तमन्ना, उनकी मुहब्बत
देखो संभल के, देखो संभल के
गम ने उठाए सैकड़ों का
दिल ने बसाए लाख महल के
पल में हंसाओ, पल में रुलाओ
पल में उजाले, पल में धुंधलके
हमने न समझा, तुमने न जाना
दिल ने मचाए लाख तहलके
लाख मनाया, लाख भुलाया
नैन कटोरे भर—भर छलके
कितने उलझे कितने सीधे
रस्ते उनके रंगमहल के
कड़ियां झेली पापड़ बेले
का सौवें दिन रैन
झलके अब तो मुखड़ा झलके!
कितने उलझे कितने सीधै— रस्ते
उनके रंगमहल के!
जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो
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