रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो
फूला पीला कनेर अहाते में
भेजे दृग से निमंत्रण
कोई हलके से चुने
रचा उसने प्रणय-छंद
कोई आग्रह से सुने
पहला चुंबन लिखाए खाते में
फूला पीला कनेर अहाते में
सुआ-पंखी अवगुंठन
उभारे हलदिया रंग
उठा उम्र का मधु-ज्वार
चढ़ा अंगों पर अनंग
नमस्कार करे आते जाते में
फूला पीला कनेर अहाते में
अरुणोदय से भी पूर्व
करते फूल ओस-स्नान
कोई आंख भर निरखे
ताने लाज के वितान
जैसे निर्वसन रूप नहाते में
फूल पीला कनेर अहाते में
रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
No comments:
Post a Comment